
मूवी बनाने के तीन पड़ाव।
चाहे आपको कम बजट वाली शॉर्ट फ़िल्म बनानी हो या कोई हॉलीवुड की फ़ीचर फ़िल्म, मूवी बनाने के काम को तीन पड़ावों में बाँटकर देखा जा सकता है: प्री-प्रॉडक्शन, प्रॉडक्शन, और पोस्ट-प्रॉडक्शन।
पूरी प्रॉसेस की समझदारी बनाने से आपको अपने समय और पैसे का ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठाने में मदद मिलेगी, ताकि आप क्रिएटिव दुनिया में कामयाबी की राह पर आगे बढ़ सकें।

प्री-प्रॉडक्शन के दौरान अपनी तैयारियाँ पूरी करें।
मूवी बनाने से जुड़ा ज़्यादातर काम प्रिंसिपल फ़ोटोग्राफ़ी के लिए कैमरा या कैमकॉर्डर उठाने के बहुत पहले ही किया जाता है।
अपने आइडिया को स्क्रीनप्ले में बदलें।
किसी भी फ़िल्म का पहला वर्शन फ़िल्म नहीं, एक स्क्रीनप्ले होता है। आइडिया तय हो जाने के बाद, स्क्रिप्ट लिखें या कोई स्क्रीनराइटर हायर करें। सोचें कि आपको कौन सी ऑडियंस तक पहुँचना है। वे क्या देखना चाहते हैं? क्या आपकी कहानी उन्हें दिलचस्प लगेगी और क्या वे आपके किरदारों को पसंद करेंगे?
निर्देशक ग्रेग एमेटा कहते हैं, "फ़िल्म को डिस्ट्रीब्यूट करने और लोगों को इसकी कहानी से सहमत करने के बारे में सोचें। आपको उन्हें साबित करना होगा कि इस प्रॉजेक्ट के लिए एक ऑडियंस मौजूद है।"
स्क्रीनराइटिंग के दौरान ज़्यादा काम रिवाइज़ करने का होता है। जिन लोगों की राय पर आपको भरोसा है, उन्हें अपनी स्क्रिप्ट दिखाएँ और उनके फ़ीडबैक के हिसाब से बदलाव करें। इस काम को कुछ बार के लिए दोहराएँ। कैमरा मूवमेंट के लिए ऐक्शन, कैमरा ऐंगल्स, और आइडियाज़ टेस्ट करने के मकसद से स्टोरीबोर्डिंग का इस्तेमाल करें।

डेवलपमेंट वाले स्टेप पर जाएँ।
डेवलपमेंट वाला पड़ाव कैसा रहेगा, यह मूवी की स्केल से तय होता है। एमेटा कहते हैं, "छोटे इंडिपेंडेंट प्रॉजेक्ट्स में डेवलपमेंट वाले पड़ाव के दौरान काम का बड़ा हिस्सा होता है पैसे जुटाना। बड़े इंडिपेंडेंट प्रॉजेक्ट्स में, शायद किसी स्टूडियो के पास एक मूवी का आइडिया हो, और उन्हें वह मूवी बनाने के लिए ज़रूरी सभी लोगों को हायर करने की ज़रूरत हो।"
जब स्क्रीनप्ले में सुधार करना हो, तो सोचें कि उस ब्लूप्रिंट को एक फ़िल्म में कैसे बदला जा सकता है। आपने जो फ़िल्म लिखी है, उसे ठीक से शूट करने में कितना खर्च आएगा? आपको सबसे पहले एक लाइन प्रोड्यूसर, प्रॉडक्शन मैनेजर, या असिस्टेंट डायरेक्टर हायर करने की ज़रूरत पड़ सकती है जिसके पास यह समझ पाने के लिए ज़रूरी जानकारी और तजुर्बा हो कि आपको कौन-कौन से लोगों की, किस तरह के सेट्स की, कैसे कॉस्ट्यूम्स की, और कौन-कौन से इक्विपमेंट्स की ज़रूरत पड़ेगी।
डायरेक्टर और टीचर डेविड एंड्रू स्टोलर कहते हैं, "किसी ऐसे शख्स को ढूँढें जिसे प्री-प्रॉडक्शन का करना अच्छा लगता हो।" "कोई ऐसा व्यक्ति जिसे स्प्रैडशीइट्स पर काम करने, फ़ोन कॉल्स करने, और ज़रूरी चीज़ें इकट्ठा करने में मज़ा आए। अगर आपको उस शख्स पर भरोसा है और उसके साथ काम करना जँचता है, तो वह आपके लिए बेहद मददगार साबित होगा।"
अगर शुरू में लागत का अनुमान बहुत ज़्यादा आए, तो हिम्मत न हारें। स्क्रिप्ट में बदलाव किए जा सकते हैं और आइडियाज़ को मूवी बनाने के लिए आपके पास उपलब्ध बजट के लेवल पर लाया जा सकता है। एमेटा कहते हैं, "अगर आपके पास $200 मिलियन का आइडिया है, लेकिन आपको इसे $50,000 में ही बनाना है, तो यह हँसी-मज़ाक के अलावा शायद ही मुमकिन हो पाए। अगर इसमें सिर्फ़ फ़्लाइंग सीन्स वाले ढेर सारे ऐक्शन सीक्वेंसेज़ ही हैं, पर उन्हें बनाने के लिए आपके पास ज़रूरी चीज़ें उपलब्ध नहीं हैं, तो सिचुएशन डूम्ड हो सकती है।"
अपनी कास्ट और क्रू जुटाएँ।
कॉन्टेंट तय हो जाने के बाद, अब समय आ गया है कि आप अपना वीडियो बनाएँ। वीडियो प्रॉडक्शन के काम को और आसान बनाने के लिए इन सुझावों पर अमल करें।
सिनेमैटोग्राफ़र से लेकर कॉस्ट्यूम और सेट डिज़ाइनर्स तक, सभी को डायरेक्टर के विशन से सहमत होना चाहिए और उस विशन के लिए लगकर काम करने का जज़्बा होना चाहिए। (फ़िल्म फ़ेस्टिवल्स या डिस्ट्रीब्यूटर्स के साथ पर्सनल कनेक्शन होना भी बेहतर होता है।) स्टोलर कहते हैं, "प्रॉडक्शन दूसरों के साथ-मिलजुलकर किया जाने वाला एक लंबा काम होता है। इसलिए अगर टीम में शामिल कोई शख्स पूरी तरह से मन लगाकर काम नहीं कर रहा है, तो उसकी वजह से पूरा काम ही धीमा पड़ सकता है।"
साफ़-साफ़ बताएँ कि आपको क्या चाहिए, लेकिन यह भी पता करें कि फ़िल्म से आपके क्रू मेंबर्स क्या हासिल करना चाहते हैं। स्टोलर कहते हैं, "मुझे वाकई में यह जानने का मन होता है कि उन्हें क्या करने का मन है।" "अगर लोगों को एहसास हो कि यहाँ पर उन्हें इज़्ज़त मिल रही है, उन्हें तरक्की करने और कुछ नया करने का, यानी अभी तक उन्होंने जितना सीखा है उससे आगे का काम करने का मौका मिल रहा है, तो वे शायद आपके लिए और ज़्यादा लगकर काम करेंगे व और ज़्यादा जमकर कोशिश करेंगे।"
आपके आसपास मौजूद टैलेंट का पूरा फ़ायदा उठाएँ। स्टोलर कहते हैं, "सबसे अच्छे प्रॉजेक्ट्स तब बनते हैं जब डायरेक्टर लोगों के सिर पर सवार रहने के बजाय बस विशन को हासिल करने में मदद करता है। इसका मतलब है अपना घमंड दूर करना और क्या चीज़ कैसे होनी चाहिए इसके बारे में लोगों की राय सुनना।"
ज़्यादा से ज़्यादा तैयारी करें।
प्रॉडक्शन शुरू होने के पहले ही जितनी ज़्यादा तैयारी होगी, आपके लिए उतना ही बेहतर होगा। एमेटा कहते हैं, "चीज़ों में बदलाव होगा, पर कम से कम आपके पास काम शुरू करते समय एक अच्छी शॉट लिस्ट या स्टोरीबोर्ड्स होंगे और ऐन मौके पर बदलाव करना ज़्यादा आसान होगा। अगर आपको पता है कि किसी सीन के लिए ढेर सारे कॉस्ट्यूम्स चाहिए, तो इसके लिए पहले से ही तय किया जा सकता है कि कब कौन से ऐक्टर्स क्या कॉस्ट्यूम्स पहनेंगे।
बारीक तैयारी करके अच्छे से समझा जा सकता है कि आपके बजट में क्या-क्या करना मुमकिन है। एमेटा कहते हैं, "प्रॉडक्शन का काम आधा-अधूरा पूरा होने पर ही पैसे खत्म हो जाने के मुकाबले प्री-प्रॉडक्शन में ही चीज़ों में कटौती करना कहीं ज़्यादा आसान होता है।" स्टोलर शूटिंग के हर दिन हर 15 मिनट के लिए एक स्प्रेडशीट बनाने की सलाह देते हैं, ताकि कास्ट और क्रू के हर सदस्य को हर समय पता हो कि उन्हें कब कहाँ पर होना है और क्या करना है। इस तरह की प्लानिंग करने से आपको भी समझने में मदद मिलेगी कि अपनी लोकेशन्स सेट अप करने के लिए आपको क्या करना है, क्या-क्या इक्विपमेंट्स चाहिए, और किस तरह के इंश्योरेंस की ज़रूरत पड़ेगी।
बजट बनाते समय जितना हो सके उतने ज़्यादा समय तक की शूटिंग के लिए प्लान करें, क्योंकि सेट पर आपको हमेशा समय की कमी महसूस होगी। स्टोलर कहते हैं, "अपने फ़ोटोग्राफ़ी डायरेक्टर के बारे में मानकर चलें कि किसी भी चीज़ में लगने वाले समय को कम करके आँका जाएगा, इसलिए अपनी तरफ़ से कुछ एक्स्ट्रा टाइम लेकर चलें ताकि चीज़ों में प्लान किए गए समय से ज़्यादा समय लगने पर कोई दिक्कत न हो।"
हर नए शॉट को सेट अप करने में समय लगता है, इसलिए अगर आपके पास क्रू मेंबर हैं, तो एक साथ कई काम किए जा सकते हैं। जब पहले शॉट को शूट किया जा रहा हो, तो सेट डिज़ाइन दूसरे शॉट पर काम कर सकता है और आपका गैफ़र पता लगा सकता है कि इसके लिए अच्छी लाइटिंग का इंतज़ाम कैसे किया जाए। सबसे अहम बात यह है कि सभी चीज़ों का समय तय किया जाए और सभी के पास उसकी जानकारी ज़रूर हो। स्टोलर कहते हैं, "यह स्प्रेडशीट का जादू है।"
कामयाब प्रॉडक्शन के लिए सुझाव।
आपने अपना प्लान बना लिया है और सभी को हायर कर लिया है (या, बजट नहीं होने की सूरत में आपने लोगों से मदद ले ली है)। आपके पास शेड्यूल, लोकेशन्स, इक्विपमेंट्स, कॉस्ट्यूम्स, और प्रॉप्स मौजूद हैं। अब समय आ गया है कि सीन्स को ब्लॉक किया जाए, या पता लगाया जाए कि कैमरे के साथ आर्टिस्ट्स कैसे हरकत में आएँगे। जब ऐक्टर्स रिहर्सल कर रहे हों, उस दौरान लाइटिंग को सेट अप और एडजस्ट किया जा सकता है। आखिर में, पक्का कर लें कि कैमरा चल रहा है और माइक्रोफ़ोन्स रेकॉर्ड कर रहे हैं, और आप अपनी फ़िल्म की शूटिंग शुरू करने के लिए तैयार हैं।
Premiere Pro की मदद से पोस्ट-प्रॉडक्शन में इन सभी को कम्बाइन करें।
अपनी फ़ुटेज में से स्टोरी को सामने लाएँ। अपनी एडिटिंग की जानकारी का इस्तेमाल करें, चाहे वह आपने फ़िल्म स्कूल से सीखी हो, फ़िल्में देख-देखकर सीखी हों, या ऑनलाइन ट्यूटोरियल्स के ज़रिए, ताकि आप अच्छी से अच्छी फ़िल्म बना सकें। फिर प्रचार करें।
फ़िल्म एडिट करें।
स्टोलर कहते हैं, "हर फ़िल्म में तीन फ़िल्में होती हैं। पहली वह होती है जिसके बारे में आपने सोचा और लिखा। दूसरी वह होती है जिसे आपने शूट किया। और तीसरी वह, जिसे एडिटिंग के दौरान तैयार किया जाता है।" जिस तरह सरप्राइजज़ेज़ से प्रॉडक्शन के दौरान फ़िल्म्स बदल जाती हैं, वही चीज़ एडिटिंग रूम में भी हो सकती है, और आपको बदलावों के साथ चलने के लिए तैयार रहना होगा।
Premiere Pro का इस्तेमाल करके किसी भी साइज़ वाली टीम्स के साथ मिलजुलकर काम किया जा सकता है। इंडिपेंडेंट फ़िल्म्स के बनने में अक्सर छोटी मगर दमदार टीम्स बेहद अहम होती हैं। डिस्ट्रीब्यूटेड टीम्स का काम कारगर व असरदार बनाने व कई एडिटर्स के होने पर सभी प्रॉजेक्ट्स में कंसिस्टेंसी बनाए रखने के लिए, 'प्रॉडक्शन्स' फ़ीचर सीक्वेंसेज़ को लॉक करने व वर्शन्स कंट्रोल करने की सुविधा देता है। सीक्वेंसेज़ के लॉक हो जाने से अलग-अलग एडिटर्स को दूसरे के काम से छेड़छाड़ किए बिना सिर्फ़ अपने-अपने हिस्सों पर काम करने में मदद मिलती है। जब किसी सीक्वेंस को लॉक कर दिया जाता है, तो उसमें दूसरे लोग कोई बदलाव नहीं कर सकते। वर्शन कंट्रोल की मदद से एडिट्स के अलग-अलग वर्शन्स को ट्रैक किया जा सकता है और ज़रूरत पड़ने पर पुराने वर्शन्स को वापस लाया जा सकता है। ऐसे में एडिटर्स बेफ़िक्र होकर बड़े-बड़े बदलाव भी कर सकते हैं और अलग-अलग क्रिएटिव आइडियाज़ आज़माकर देख सकते हैं।
अपना एडिट शुरू करने से पहले अपनी क्लिप्स को विज़ुअल तरीके से ऑर्गनाइज़ करें और सोच-विचार करके देखें कि क्या-क्या आइडियाज़ आज़माए जा सकते हैं।
फ़्रीफ़ॉर्म व्यू की मदद से क्लिप्स को विज़ुअल तरीके से किसी भी ऑर्डर में लगाया जा सकता है। यह एक डिजिटल स्टोरीबोर्ड की तरह है, जहाँ देखा जा सकता है कि अलग-अलग शॉट्स एक साथ कैसे दिखेंगे। यह एडिट शुरू करने से पहले तमाम आइडियाज़ के बारे में सोच-विचार करने और आइडियाज़ को ऑर्गनाइज़ करने में मददगार होता है।
एडिट्स को फ़ाइन-ट्यून करें और रफ़ कट्स को जल्दी से असेंबल करें।
"पैनकेक एडिटिंग" की मदद से एक के ऊपर एक कई टाइमलाइन्स को रखा जा सकता है, ताकि आप सीक्वेंसेज़ के बीच क्लिप्स को आसानी से ड्रैग एंड ड्रॉप कर सकें। अपने एडिट्स को सीन के हिसाब से ऑर्गनाइज़ करें और उन्हें रिव्यू करें या एक से ज़्यादा टाइमलाइन्स खोलकर विज़ुअल तरीके से और ज़्यादा बारीकी से समझने की कोशिश करें।
एडिट करते हुए ही अपनी स्टोरी को विज़ुअलाइज़ करने के लिए म्यूज़िक और साउंड इफ़ेक्ट्स का इस्तेमाल करें।
Adobe Stock टेम्पररी म्यूज़िक ट्रैक्स और साउंड इफ़ेक्ट्स की लाइब्रेरी उपलब्ध कराता है, जिसमें हज़ारों मुफ़्त ऑफ़रिंग्स शामिल हैं। एडिट्स में इन चीज़ों का इस्तेमाल करके समझा जा सकता है कि फ़ाइनल म्यूज़िक तैयार होने या उसका लाइसेंस मिलने के पहले फ़ाइनल पीस कैसा लगेगा, जिससे रिव्यूज़ के लिए पॉलिश किया हुआ रफ़ कट तैयार करने में मदद मिलेगी।
अपनी टाइमलाइन बनाते समय कलर और साउंड को बैलेंस करें।
अपनी एडिट से ध्यान भटकाने से बचने के लिए, कलर कंसिस्टेंसी और ऑडियो लेवलिंग पर पहला पास ज़रूरी होता है। कैमराज़ के बीच कंसिस्टेंसी पक्की करने के मकसद से ज़रूरी सुधार करने और कलर मैच करने के लिए ऑटो कलर जैसे टूल्स इस्तेमाल करें। भले ही आप कलरिस्ट न हों, शुरुआती रिव्यूज़ के लिए फ़ुटेज के लुक को जल्दी से बेहतर बनाया जा सकता है। एशेंश्यल साउंड पैनल में, डायलॉग क्लीन अप करने के लिए एन्हांस स्पीच का इस्तेमाल किया जा सकता है और हर लाइन सुनने में साफ़ तौर पर समझ में आए, इसके लिए लाउडनेस मैचिंग का इस्तेमाल किया जा सकता है।
प्रॉडक्शन वैल्यू बढ़ाने के लिए इफ़ेक्ट्स का फ़ायदा उठाएँ।
कुछ विज़ुअल इफ़ेक्ट्स और टाइटल्स का अच्छे से इस्तेमाल करके प्रॉजेक्ट्स की स्टोरीटेलिंग या विज़ुअल अपील बढ़ाई जा सकती है। आपको हमारे बड़े प्लगइन इकोसिस्टम में स्पेशल इफ़ेक्ट्स, ट्रांज़िशन्स, और कलर ग्रेडिंग वगैरह के लिए और भी प्लगइन्स मिल सकते हैं। इससे एडिट्स को दिखने में प्रोफ़ेशनल लुक दिया जा सकता है, भले ही आपके पास एड्वान्स्ड स्किल्स न हों।
अपनी टीम से जुड़े ज़रूरी मेटाडेटा को ट्रैक करें।
एक ऐसा एनवायरमेंट जिसमें तेज़ी से काम चल रहा हो और बहुत सारे एसेट्स इस्तेमाल हो रहे हों, ऐसे में सीधे वीडियो पर ज़रूरी जानकारी ट्रैक करना मिलजुलकर काम करने व ऑर्गनाइज़ करने के लिए बेहद अहम हो सकता है। मेटाडेटा बर्न-इन की मदद से वीडियो पर टाइमकोड, सीन नंबर्स, या अन्य ज़रूरी जानकारी को एम्बेड किया जा सकता है।
फीडबैक का काम कारगर व असरदार बनाएँ।
प्रोड्यूसर्स, डायरेक्टर्स, या टीम के अन्य मेंबर्स के लिए पूरे काम के दौरान उसे रिव्यू करना और उस पर कॉमेंट करना आसान बनाएँ। Frame.io की मदद से एडिट्स और फ़ीडबैक शेयर किए जा सकते हैं, और इस तरह फ़ीडबैक के पूरे काम को मज़बूत बनाया जा सकता है। वे सीधे वीडियो पर कॉमेंट्स डाल सकते हैं। इससे बदलावों को समझना और उन्हें अमल में लाना आसान हो जाता है।
एडवांस्ड ग्राफ़िक्स, साउंड, और विज़ुअल इफ़ेक्ट्स की मदद से अपने प्रॉजेक्ट को बेहतर बनाएँ।
रफ़ कट पर काम करते समय अगर ऐसे एडिट्स भेजे जाएँ जो दिखने में कम्प्लीट लगें तो उससे ऑडियंसेज़ को आपकी स्टोरी के जुड़े रहने में मदद मिलेगी। Creative Cloud की मदद से, Premiere Pro से After Effects, Photoshop, और Audition जैसे दूसरे Adobe ऐप्लिकेशन्स पर और उनसे वापस Premiere Pro पर आना जाना आसान होता है।
फ़िल्म को प्रमोट करें।
जब फ़ाइनल कट तैयार हो, तो अपनी जान-पहचान के सभी लोगों से उसे प्रमोट करने के लिए कहें। "प्री-प्रॉडक्शन की तरह ही आपको एक ऐसा शख्स चाहिए, जो लोगों से बात करने और उनसे संपर्क बनाने में माहिर हो।" वैसे तो डिस्ट्रीब्यूशन के कई चैनल्स होते हैं, लेकिन प्रमोशन के बिना आपकी फ़िल्म कोई नहीं देखेगा।
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