AI वीडियो एडिटिंग के और फ़ीचर्स।
मॉर्फ़ कट
मॉर्फ़ कट ट्रांज़िशन्स का इस्तेमाल करने से अलग-अलग सीन्स के बीच की कड़ी बरकरार रहती है और एक क्लिप से दूसरी क्लिप तक जाने में कुछ भी अजीब नहीं लगता। स ट्रैकिंग और ऑप्टिकल फ़्लो इंटरपोलेशन के एक एड्वांस्ड कॉम्बिनेशन की मदद से इंटरव्यूज़ या टॉकिंग हेड वीडियोज़ में मौजूद अजीब लगने वाले पॉज़ेज़ या अचानक से होने वाले कट्स दूर करें। इससे ट्रांज़िशन्स देखने में अजीब नहीं लगते व अलग-अलग सीन्स के बीच की कड़ी बरकरार रहती है। एक ही शानदार शॉट में की गई रेकॉर्डिंग के जैसे दिखने वाले ट्रांज़िशन्स की मदद से मनचाहे वीडियोज़ बनाएँ।
कलर मैच
कलर मैच की मदद से सीक्वेंस में मौजूद दो अलग-अलग वीडियो क्लिप्स के कलर्स मैच करें। इससे एक ही सीन के अलग-अलग शॉट्स में कलर्स के बीच मौजूद फ़र्क को दूर किया जा सकता है। अलग-अलग टेक्स के बीच मौजूद सैचुरेशन, वाइट बैलेंस, और ब्राइटनेस का फ़र्क मिटाएँ, और अलग-अलग शॉट्स को जोड़कर एक इकलौता, एक जैसा सीन तैयार करें। अपनी फ़ुटेज के लिए एक तय लुक बरकरार रखें, और स्किन टोन्स व हावभाव पर खास ध्यान देने के लिए फ़ेस डिटेक्शन चालू करें।
रीमिक्स
अपने साउंडट्रैक और विज़ुअल्स का तालमेल बनाए रखें। एडिट करते हुए वीडियो और म्यूज़िक की टाइमिंग मैच कराने के लिए म्यूज़िक को रीटाइम करें। वीडियो और ऑडियो को मैन्युअल रूप से सिंक करने में घंटों का समय खर्च करने के बजाय AI की ताकत का इस्तेमाल करें और स्क्रीन पर दिखने वाले विज़ुअल्स व स्पीकर्स से बाहर आ रही आवाज़ में तालमेल बनाए रखें और ऐसा करते हुए साउंडट्रैक के असर में भी कोई कमी न आने दें।
ऑटो डकिंग
पक्का करें कि डायलॉग और बैकग्राउंड ऑडियो में बिलकुल सही तालमेल हो। जब भी कोई बोल रहा हो, तब हर बार बैकग्राउंड साउंड लेवल्स को मैन्युअल रूप से एडजस्ट करने में बहुत समय लगता है। ऑडियो डकिंग अपने आप ऑडियो कीफ़्रेम्स तैयार कर देता है जो डायलॉग के समय म्यूज़िक व साउंड इफ़ेक्ट्स को कम कर देते हैं। फिर जब कोई बात नहीं कर रहा हो, तो यही फ़ीचर्स साउंडट्रैक को वापस भी ले आते हैं।
ऑटो रीफ़्रेम
कई कैमराज़ और डिवाइसेज़ के लिए एक हॉरिज़ॉन्टल 16:9 ऐस्पेक्ट रेश्यो आम तौर पर डिफ़ॉल्ट होता है। लेकिन सोशल प्लेटफ़ॉर्म्स पर वर्टिकल 9:16 ऐस्पेक्ट रेश्यो ज़्यादा पसंद किया जाता है। एक ऐस्पेक्ट रेश्यो से दूसरे में बदलने के लिए कीफ़्रेम मोशन एडिट्स करने पड़ सकते हैं, ताकि चलते-फिरते सब्जेक्ट्स फ़्रेम में दिखाई पड़ें और इस काम में काफ़ी समय लग जाता है। ऑटो रीफ़्रेम से यह दिक्कत दूर हो जाती है। यह शॉट्स के सबसे अहम पहलुओं की फ़ौरन पहचान कर लेता है और ऐस्पेक्ट रेश्यो बदलने पर भी उन्हें फ़्रेम के अंदर ही रखता है। यह उस समय खासकर काम आता है, जब आपने कोई बड़े साइज़ वाला वीडियो बनाया हो पर आपको Instagram जैसे किसी सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर उसकी एक क्लिप स्क्वायर या टॉल ऐस्पेक्ट रेश्यो में फ़ॉर्मेट करके डालनी हो।